Tuesday, December 14, 2010

अखबारो की सुर्खियो में
कोई भ्रष्ट नेता न पाया
 जाग चुका या अभी स्वप्न है
 यह कैसा कलयुग है आया
समाचार की भाषा में अब
भ्रस्टाचार  पर्याय बन गया
जीवन की परिभाषा में
सत्य न्याय कही दूर छिप गया
आनंदित असुरो की सेना 
अपने कर्मो का न्याय  तोलती
संविधान को रखे ताक पर
स्वाभिमान से सदा बोलती
राज्य हमारे पितृ  सौप गए
 बच्चे को राजा बनवायेगे
 जनता का क्या वो जी लेगी
हम देश  बेच कर खायेगे 

No comments: