Sunday, September 05, 2010

सत्य 

आज गगन को देखा मैंने
कुछ बदला सा पाया है
धुंधलापन  गायब  है
हर दृश्य  उभर कर आया है

झूम रहे तरुपत्र सामने 
पक्षी सुर में गाते है 
सावन बीत गया है फिर भी 
बादल  गीत सुनाते  है

बहती मादक  पवन सयानी 
शीतलता को चूम  रही  
फुटपाथो  पर बिखरी  छाया 
आज खुशी से कूद रही 

रहने दो बस यही छवि 
क्या परिवर्तन स्थायी  है 
छाया धुंधलापन आँख खुली 
यह सपना भी अस्थायी  है  



  

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