Friday, May 02, 2014


सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
अभी तो गिरा था लहू
जमीन से उसका निशान भी नहीं मिटा
क्या इन घाटियो में फूल फिर से खिल पायेगा
सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
वो डाल रहे है परदे आखो पर अनगिनत
पर क्या इस मन को भी कोई ढक पायेगा
सोचकर देखो क्या बसंत आएगा
मुझे नहीं पसंद है उदासी और रक्तरंजित तस्वीरें
पर क्या जेहन में जो बसा जो जा पायेगा
सोचकर देखो क्या बसंत आएगा

कृते अंकेश

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