Sunday, October 28, 2012

एक आहट साँसों के स्वर से 
मिटती गयी तवस्सुर से  जुड़ के
 बरबस अनायास आ निकली 
अंखियो  से मणिको की टोली 
खेल रहे हम उससे होली 

रंग भी अपने रहे निराले 
तोड़ तोड़ कर सपने डाले 
और जला दी उनकी होली 
साँसों ने आवाज़ न खोली 

उड़ता धुआ रहा चिल्लाता 
कब तक छाएगा सन्नाटा 
गयी नहीं पर  ख़ामोशी खोली 
रहे खेलते बस हम होली 

कृते अंकेश 

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