गहन वेदना
अवलंबन है अपरिचित अनुभूतियो की
अविस्मित अनजान अनकही
स्वरविहीन जीवित बस मध्य रही
पूर्ण हो तुम आज भी
अवलंबन है अपरिचित अनुभूतियो की
अविस्मित अनजान अनकही
स्वरविहीन जीवित बस मध्य रही
पूर्ण हो तुम आज भी
जब ढूंढते विश्राम हो
ठोकरे ही प्रेयसी
जिनसे गिरे हर शाम हो
स्वच्छता या सरलता
बस यही आभूषण तेरे
दिव्य है वो पुष्प जो
थे रहे तुझको घेरे
चेतना तुझको लिए जाती रही अस्माक में
पूर्णता ही बस रही सदा तेरे साथ में
कृते अंकेश
ठोकरे ही प्रेयसी
जिनसे गिरे हर शाम हो
स्वच्छता या सरलता
बस यही आभूषण तेरे
दिव्य है वो पुष्प जो
थे रहे तुझको घेरे
चेतना तुझको लिए जाती रही अस्माक में
पूर्णता ही बस रही सदा तेरे साथ में
कृते अंकेश
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