बर्तन चाँदी के खनक रहे
जेवर सोने के भड़क रहे
मिटटी के प्याले रहे सुप्त
तप क्रोधानल में बने युक्त
जेवर सोने के भड़क रहे
मिटटी के प्याले रहे सुप्त
तप क्रोधानल में बने युक्त
आ उमड़े है मेघो के झुण्ड
हो गयी कालिमा छाया है धुंध
बरसे नैना कुछ अविस्तार
थे रहे कहा जब की पुकार
लहरें टकरा कर गयी टूट
सागर से भी वो गयी छूट
लेकिन छोड़े तट पर निशान
नयी लहरें जिसे रही पहचान
कृते अंकेश
हो गयी कालिमा छाया है धुंध
बरसे नैना कुछ अविस्तार
थे रहे कहा जब की पुकार
लहरें टकरा कर गयी टूट
सागर से भी वो गयी छूट
लेकिन छोड़े तट पर निशान
नयी लहरें जिसे रही पहचान
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment