Friday, October 26, 2012

जूते खा कुर्सी मिली, कुर्सी से धनवान 
जो न जूते खाए वो, रहे आम इंसान ||   
इज्ज़त थी तब धन नहीं, अब धन  है इज्ज़त नाही
इज्ज़त की किसको पड़ी, जब बेईज्ज़त पूछा जाये ||   कृते अंकेश 

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