Wednesday, August 08, 2012


प्रेम परिभाषित नहीं है 
प्रेम प्रस्तावित  नहीं 
प्रेम प्रेरित  भी नहीं है 
प्रेम पूरित  भी नहीं 

साध्य है या साधना 
आराध्य या आराधना 
हार  जीत या मधुर 
है कोई उपासना 

क्या  विरह का दंभ है 
या  मधुर संग है 
आसमा से या कटी 
बस कोई पतंग है 

रंग में न रूप में 
छाव में न धूप में 
यह मिला जब भी मिला 
बस प्रेम के ही रूप में 

कृते  अंकेश  

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