Wednesday, July 11, 2012

रात अँधेरी, पिया वावरा मेघ मचलते बरसो न
सूखे सूखे सदिया बीती  शुष्क  अधर  है  बरसो न
उन्मादों  के  आवाहन  से  जूझ   रही  यह काया  है
इस  काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

चली निशा है क्या ढूँढने, जीवन का रंगमंच सजा
प्यासी  काया, प्यासा जीवन, प्यासा ही अंतर्मन यहाँ
इस विदग्ध  प्यास से मुझको तृप्त कराते बरसो न
इस काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

तेरी वाणी, तेरी छवि या तेरी ही मुस्कान यहाँ
तेरे ही इन भाव बिभावो  में खोया जीवन है यहाँ
इस जीवन को  विरह भाव से मुक्त कराते बरसो न
इस काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

मेरा क्या उन्माद हूँ पल का, पल में  ही मिट जाऊँगा
लेकिन इस पल के रहते में गीत मिलन के गाऊँगा
तुम भी  मेरी मुस्कानों  में मुस्काने भर  बरसो न
इस काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

कृते अंकेश

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