Tuesday, May 01, 2012

है अप्रतिम सौंदर्य तुम्हारा
मानता हूँ इसके सम्मुख में यहाँ हारा

कर दिया खुद को समर्पित मैंने यहाँ कब का प्रिये
अब तो बस हूँ मुस्कुराता आस एक मन में लिए

शायद कभी निर्णय करोगे
तुम इस दिन और रात का
है पला जो ख्वाब दिल में
उस मुलाक़ात का

है अप्रतिम सौंदर्य तुम्हारा
मानता हूँ इसके सम्मुख में यहाँ हारा

मानता हूँ सौंदर्य में  तुम श्रेष्ठ हो   जग में प्रिये
में भी नहीं लेकिन बुरा हूँ
उस रात के स्वागत के लिए
तेरी विभा में जब लगेगा इंदु भी बस मात्र तारा
मानता हूँ इसके सम्मुख में यहाँ हारा

है अप्रतिम सौंदर्य तुम्हारा

क्या उडोगे साथ मेरे बनके पक्षी इस गगन में
है सदा से थी रही जो, आरजू  मेरे इस मन में
जानते हो उचाईयों से भी नहीं अब तक में हारा
है अप्रतिम सौंदर्य तुम्हारा
मानता हूँ इसके सम्मुख में यहाँ हारा

अंकेश

No comments: