Monday, May 21, 2012

सत्यमेव जयते, समाज की जटिल समस्याओ को सिनेपटल के माध्यम से उठाने का एक बेहद सराहनीय प्रयास, धारावाहिक  के नवीनतम  अंक  में  दहेज़ की समस्या को दर्शाया गया हैं| दहेज़ कम  से कम भारतवर्ष के लिए एक नया शब्द नहीं है, यह कुरीति समाज में एक अरसे से विद्यमान है और ऐसा नहीं है की इस समस्या को उठाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया | बचपन में एक कहानी पड़ी थी जहा विवाहिता का भाई जब उसको सावन के महीने में बुलाने के लिए जाता है तो वहा  उसको काफी बेईज्ज़ती  सहनी पड़ती है |  उसको ताने दिए जाते है कि तुमने अपनी बहिन को कुछ दिया भी या ऐसे ही कोरी शादी कर डाली | बेचारा भाई सब कुछ सुनकर उनकी मांगो को मानने को तैयार हो जाता है, लेकिन विवाहिता की सास यह कहकर उसे लौटने को कहती है की पहले हमारी मांगे पूरी करो तब बहिन को लेकर जाना | भाई जाने ही वाला था,  कि सामने से अपने जीजाजी को आते हुए देखा, वह कुछ उदास दिखते थे| सास मन में  शंकित होकर पूछती है ... पूजा कहा है? .... अकेले क्यों आ गया?... जीजाजी दुखी होकर बोले.... उन्होंने कहा है पहले हमारी कही हुई चीज़े भेजो,  फिर लड़की को लेकर जाना.... चंद शब्दों में कहानी काफी कुछ कह जाती है, कहानी का सार था .... क्यों हम  भूल जाते है कि जो हमारे लिए कष्ठदायक   है वह दूसरो के लिए भी कष्ठदायक  होगा .... लेकिन दुर्भाग्य आज भी यह कुरीति समाज में विद्यमान है |

शिक्षा  एवं आत्मनिर्भरता इस समस्या से निबटने का एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता  है | लेकिन नेतिक मूल्यों के बिना  इस लक्ष्य को प्राप्त करना उतना आसान नहीं है | अतएव मेरा व्यक्तिगत मत है कि इस समस्या से निबटने के लिए युवा वर्ग को जाग्रत करना सर्वश्रेष्ठ   विकल्प है | जिसमे शायद आमिर  जी का यह प्रयास  मददगार साबित होगा | 

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