Sunday, April 29, 2012

यमुना तेरे तट पर लिखी कितनी कहानी है
कितने शहर बसते यहाँ कितनी रुवानी है
आँखों में है रहती  चमक सजती  जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है

थी कृष्ण की कालिंदी तू थी  सूर का बचपन
तेरे ही तट पर थी रुकी मुगलों की हर धड़कन
ग़ालिब ने की थी शायरी तेरे ही सायो  में
थी ली  भगत ने भी  पनाह तेरी ही बाहों में

तेरे किनारों पर  लगे कितने यहाँ  मेले
तेरे तटों पर न  जाने कितने वीर थे खेले
तेरे सहारे ही हुई विकसित यह सभ्यता
हाय मगर क्यों भूली आज यह तेरी महत्ता

संभलो संभालो आज यह अपनी निशानी है
अपनी रगों में दोड़ता इसका ही पानी है
आँखों में है रहती  चमक सजती  जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है

अंकेश

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