Sunday, May 13, 2012

हुई रात मेरे तात भी आते 
देखो पंक्षी घर को जाते 
छोड़ो हाथ मुझे जाना है 
वापिस कल भी तो आना है 

अभी कहा है चाँद भी निकला 
रवि किरणों का रंग न बदला 
क्या है जल्दी कहा है जाना 
बना रहे हो व्यर्थ बहाना 

देखो रात घनी है घिरती 
तुमको सूझ रही बस मस्ती 
छाए मेघ है भींग न जाना  
 ऊपर से है पथ अनजाना

नहीं मिलेगा ऐसा मौका
छलकेगा जल जब अम्बर का 
तेरे चेहरे से मोती बनके 
उसका मुझको दर्श है पाना 

क्या है जल्दी कहा है जाना 
बना रहे हो व्यर्थ बहाना ।।


कृते अंकेश   

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