Saturday, March 19, 2011

मेरी  होली   

कोरे कागज से बचपन में
माँ ने प्यार का रंग चढ़ाया 
पापा ने सिखलाया जीना
ज्ञान रंग उनसे ही पाया
भाई तेरा रंग अनोखा
तुझ बिन बचपन सूना होता 
खेल खिलोने प्यारी दुनिया
यादगार हर पल न होता 
मिली ज्ञान की दूजी शिक्षा
विद्या का आँगन था प्यारा
नन्हे मुन्हे चंचल मन को
बेशकीमती रंगों में ढाला
नन्हे मुन्हे मेरे साथी 
कितने रंग थे मैंने पाए
भीग  रहा था रंग बिरंगा
यह पल कभी भी ढल न पाए
आज रंगों की पावन बेला
रंगों में रंग जाऊँगा
आने वाले जीवन को भी
इन रंगों से सजाऊँगा
 
 
कृते अंकेश    
   

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