Monday, November 16, 2015

तुम्हे मुझ तक पिघलने से
यहाँ किसने ही रोका है
जो तुम चाहो तो मिल जाओ
जो तुम चाहो तो घुल जाओ
बरसती रात की चादर
या ओढे जुल्फ का बादल
समेटे नींद आँखो में
उतर सपनो में छा जाओ 
तुम्हे मुझ तक पिघलने से
यहाँ किसने ही रोका है
अँधेरा देर तक कैसे
छिपाएगा जो अंदर है
नहीं जजवात है थोड़े
भरा पूरा समुन्दर है
खयालो की ही कश्ती में
कभी इस तीर तक आओ
जो फिर चाहो तो मिल जाओ
जो फिर चाहो तो घुल जाओ
तुम्हे मुझ तक पिघलने से
यहाँ किसने ही रोका है

कृते अंकेश

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