Thursday, September 18, 2014

प्रियवर मेरा श्रृंगार कहाँ  है
जीने का अधिकार कहाँ  है
नाच रही बस काया मेरी
बोलो इसका सत्कार कहाँ है

मेरा खोया प्यार कहाँ है
खुशियो का संसार कहाँ है
ढूंढ रही है अँखियाँ जिसको
वो जीवन का आधार कहाँ है

प्रियवर मेरा श्रृंगार कहाँ  है

में बावरी बनकर भटकी
जीवन स्थिरता को खोजा
चंचल मन था रहा भटकता
मिला न कोई जिसने रोका

कह दूँ अंतर्मन की पीड़ा
ऐसे पल का व्यापार कहाँ है
रख दूँ अपने मर्म का हीरा
बोलो ऐसा संसार कहाँ है

प्रियवर मेरा श्रृंगार कहाँ  है

कृते अंकेश

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