Saturday, March 08, 2014

रात अँधेरे को लिए
लहरो पर सवार पास चली आ रही थी
और रेत के किनारे पर बैठी शाम हमें छोड़ कर जा रही थी
लोग इस सबसे अनभिज्ञ अपनी धुन में मदमस्त थे
रौशनी के पहरेदार चुपचाप परदे को बदलने में व्यस्त थे
कितनी आसानी से सब कुछ बदल जाता है
और यह जग फिर भी यु ही मुस्कुराता है

कृते अंकेश

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