Monday, December 17, 2012


पंखो के परदे
उड़ते गिरते चलते फिरते
ढलते बुझते, फिर फिर खिलते
खिल कर मिलते, मिल कर खिलते
पंखो के संग संग थे हिलते
उम्मीदों ने पंख लगाकर
पर्दों को आकाश दिखाया
जीवन ने सपनो को पाकर
मुस्कानों को पास बुलाया
अहसासो के आवाहन में
शामिल जीवन का सूनापन
पंखो के पर्दों में खोया
यह तन यह मन सारा जीवन

कृते अंकेश

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