Monday, November 28, 2011




देख गगन में घिरते मेघो को नहीं तरसती
उन नयनो ने जल की इतनी धारा बरसाई

गए सूख पर वह कपोल न जाने कब से
उन आँखों में नमी कही भी नज़र न आई


कुछ विषाद सा भरा हुआ है सीने में उसके
वक़्त बीतते  जड़े हुई बस गहरी जाती
न जाने किसे ढूढती  विस्मृत आँखे
ऐसा भी दिखलाती क्या रूप जवानी 


कृते अंकेश



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