Wednesday, November 02, 2011

अगर पंख जो मेरे  होते 
दूर गगन तुमको ले जाता
पर्वत नदिया झरने सबकी 
पल भर में ही सैर कराता

खूब खेलतेफिर हवाओ में 
पलक झपकते ही खो जाते 
थक जाते जो यदि कही तो
पेड़ो के मीठे फल खाते

फिर यह सारी सुन्दर  चिड़िया
अपनी भी दोस्त हुआ करती
हमें जंगलो में ले जाती
संग अपने खेला करती

खरगोशो की माद देखते
हिरनों को देख उछलता
झाड़ी में छुप देखा करते 
प्यारे भालू को शहद टटोलता

तब जंगल का राजा भी
अपने पंखो के नीचे होता
देखो वह हिरनों का झुण्ड भागता
शेर कही वही पीछे होता

नदियों के तट पर जाकर फिर
सूरज को ढलता देखा करते
थक जाते जो यदि कही  तो
बापस घर का डेरा करते


कृते अंकेश

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