Monday, February 28, 2011

समय कितना तेज़ी से बदला, जिन चीजो  से हमारा परिचय उम्र के दूसरे दर्जे में हुआ, आने वाली पीढ़ी को वो विरासत में ही मिल गयी.  देखते  ही देखते  भावी जनरेसन  हमे कितना पीछे छोड़ गयी, पता ही नही चला. क्रांति हथियारो  से नही विचारो से होती है, कितना सटीक उदाहरण  हैं, सूचना क्रांति को ही ले लीजिये, चिठ्ठी  ने न जाने कब  मेल का रूप ले लिया  और फोन कैसे   घर घर में पहुच गया, इसकी भनक भी न लग सकी. मौगली , रंगोली और साप्ताहिक  आने वाले अनेक नाटको  के लिए बेसब्री से हफ्ते भर इंतज़ार करने वाले इंसान ने चैनलो का ऐसा पुलिंदा बना दिया, कि हम साथ साथ नाटक देखना भी भूल गए. परिवर्तन के इस युग में गलियो में भटकने वालो बच्चो के झुण्ड, चेट रूम्स में भटकने लगे. वैसे भी उम्र के इस पड़ाव में नियंत्रण की किसे परवाह होती है. खुली धार की भाति जहा दिशा देखि चल दिए, भले ही मौड़ कितना ही भयानक एवं  रास्ता कितना ही खतरो  से भरा क्यो न हो. आज़ादी के अपने फायदे भी है, शिक्षा, चिकित्सा , विज्ञान, खेल अवं अन्य अनेको आयामो में विश्व भर से विचारो  का आदान प्रदान द्रुत गति से होने लगा. परिवर्तन की ऐसी बयार चली कि सरहदे भी धुंधली होने लगी. सामाजिक संगठन परिवर्तित होने लगे. हम एक दूसरे के नजदीक आते गए,  किन्तु हमारे प्रभाव की  सीमा उतनी ही विस्तृत होती गयी. राष्ट्र एवं समाजो की आन्तरिक  समस्याए  विश्व पटल को प्रभावित करने लगी. अमेरिका में होने वाली घटना  का असर मुंबई के स्टोक मार्केट पर दिखने लगा. लीबिया में व्याप्त असंतोष से कच्चे तेल की कीमतो ने आसमान छूना प्रारंभ कर दिया, पटना के एक आम इंसान की जेब भी इससे प्रभावित हुए बिना न रह सकी. लगता है जैसे कि हम एक विकसित किन्तु संवेदनशील भविष्य की और बढते जा रहे है. जहा हमारे मध्य सामंजयस्य हमारे स्वय के अस्तित्व से भी अधिक आवश्यक हो गया है. हम केवल भौतिक ही नहीं सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं हर प्रकार से एक दूसरे को प्रभावित करने लगे है. विकास  का यह बहुत ही आकर्षक पहलू है. जहा हमे अपने अपने क्षेत्र के गुड़ दोष निखारने का  मौका अनायास ही मिल जाता है. लेकिन अगर हमने यह मौका गवा दिया तो प्रकृति स्वयं  ही किसी  एक को चुन लेगी, लेकिन प्राकृतिक चयन सर्वोतम ही हो ऐसा आवश्यक नही है.

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