Saturday, February 26, 2011

एक एक कर बढता है
वह मील का पत्थर
अंतिम सफर तक चलता  है
वह मील का पत्थर
बनता  गवाह  हर  कारवा  का
वह मील का पत्थर
मूर्त  है फिर  भी है जीता 
वह मील का पत्थर
सेकड़ो को राहे बताता 
वह मील का पत्थर


कल से कल  को है मिलाता
वह मील का पत्थर
गाव से शहरो  को जाता
वह मील का पत्थर
भटको  को मंजिल  दिखाता
वह मील का पत्थर
नन्हा है लेकिन बड़ा है
वह मील का पत्थर
आज भी गुमसुम खड़ा है
वह मील का पत्थर



1 comment:

MJ said...

gud 1....simple yet complex....