Saturday, June 26, 2010

समर 

यह  समर मिलन है  सीमा  का
हर घाव यहाँ  धुलते हैं
जब रक्त यहाँ बहता हैं
माटी से रिसता हैं
जाता हैं उस पार वहा
जहा एक वीर है और ढहा
माटी करवाती आलिंगन
चूमा करती हर कण से कण
यह रक्त नहीं आंसू है
जो धरती आज है रोती
खोये है दो वीर पुत्र
कैसे खुश हो सकती
फिर जस्न मना यह कैसा
यह कौन बजाये तुरही
यह किसने खीची  सीमा
यह किसकी संसोधित संधि

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