Saturday, June 19, 2010

       समर्पण 

उस  क्षण  मुझको विश्राम कहा
आनंद भी हैं अविराम नहीं
सीमा अब तक अपरिभाषित सी 
बिखरी आशा अनजान यही

मुझको उत्तर की चाह  नहीं
मेरे प्रश्नों का मोल यही
जीवन मेरा संग्राम सा हैं
पाने की इसमें आस दबी

कुछ पल गुमसुम ही रहने दो 
 ख़ामोशी तोड़ी जाएगी 
बरसो  से ख्वाब  सजाया है 
तस्वीर  भी  मोड़ी जाएँगी 

अश्रु भी अवसान नहीं 
जीवन भी अंत नहीं होगा 
यह क्रम सदा चलता आया 
मुझसे विचलित न कल होगा 

यही समर्पण पाया था 
मैं यही समर्पण दे जाऊँगा 
मैं आज समर्पित होता हूँ 
कल  यही समर्पण चाहूँगा 

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