Sunday, June 30, 2013

कुछ बूंदे बारिश की घुलकर
एक पहचानी बस्ती से मिलकर
बीता बचपन खोल रही है
और समय को मोड़ रही है 
इन्ही फ़ुहारो सा था बचपन
उछल बिखर कर बीता हर दिन
भीगा तन मन भीगा बचपन 
बचपन की बारिश की यादे
बरस रही है हल्के हल्के
हल्के हल्के हल्के हल्के
खोल रही है तोङ रही है
कुछ परतो को जोङ रही है
घुलकर बारिश की कुछ बूंदे
आज समय को मोड़ रही है

कृते अंकेश

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