Friday, June 28, 2013

या तो चलने  का मौका दो
या फिर जलने  का मौका दो
कब तक होगी यह रात प्रखर
कब तक अश्रु विप्लव यह शहर
कब तक उमडेगा इन्कलाब
कब तक जीवित है शेषनाग
कब तक चमकेंगे तुच्छ स्वर
कब तक खनकेंगे चंद महर
उड़ता जायेगा यह विषाद
कर दो जाकर अब शंखनाद
है प्रहर यही है घडी यही 
जो हुआ अभी नहीं तो कभी नहीं

कृते अंकेश 

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