Saturday, September 15, 2012

तेरे सिवा कोई न था 
तेरे सिवा कोई नहीं 

बारिशो से  भींग कर 
सीली  पवन कहती  रही 

उड़ते रहे मुडेर पर 
चोखट के परदे इधर उधर 

क्या  पता यह बारिशे 
ले जाएँगी इनको किधर 

घुलता रहा था चाँद भी 
मेघो के गर्जन के तले

बिखरी पड़ी  कोई  छवि 
एक अधूरा जीवन लिए 

भींगता आकाश था 
और भींगती हर स्वास  थी 

बारिशे होती रही 
यह बारिशे कुछ ख़ास थी 

कृते अंकेश 

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