Friday, April 22, 2011

उस बारिश में भीगा था मन 
अब तक पलको में पानी है
ख्वाइश तो पंख लगा उड़ने की थी 
लगता अब सब नादानी है

रेत में खीचे चित्र यहाँ 
पल भर के साथी होते है 
लहरो का जो साथ मिला
 बन सपनो के वासी होते है 

आँसू को  दोष भला क्यो दे 
उसकी  तो फितरत बह जाना 
पलको ने सब कुछ देखा था 
इनको तो था चुप रह जाना   

अब तो मन भी अपने पास नहीं
ख़ामोशी का बस साया है
आहट भी शोर सी लगती है
न कोई आता जाता है

ढलती शामो में डूब रहा
जीवन का यह बेरंग सा पल 
बारिश तो आती जाती है 
मन क्यो है इतना यह चंचल 

उस बारिश में भीगा था यह
अब तक पलको में पानी है
ख्वाइश तो पंख लगा उड़ने की थी 
लगता अब सब नादानी है

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