Sunday, July 25, 2010

आदित्य ने आभा को पिघला आज है बरसा दिया
ग्रीष्म ने भी शीर्ष पर रहने को है तय  किया 
जीवन लगा पिघलने स्वेद की बूदो तले
वाष्प बन धरा का सारा नीर भी जाता रहा

चल रही पवन भी आज पूरे जोर शोर से
बरसा रही अनल की धार आसमा के छोर से
तपती तपस्या जून की है इन्द्र ने भी सुन रखी
लापता है मेघराज बढती घटा रविन्द्र की

धार जमुना की गई सिकुड़  सर्प रेख सी 
व्याकुल हुई धरा तकती  राह मेघ की
आ चला आषाण लेकिन ताप तेवर तीव्र है
जीवन गया सिमट चढ़ा  प्रदूषण की भेट है 



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