Monday, January 25, 2010

प्रकृति के पुत्र
मनुवंशज मानव सुपुत्र
व्याकुल है किसी बड़े शहर मैं
चिंतित हैं परिवर्तित पर्यावरण मैं

उद्देश्य अभी भी स्वार्थ ही है
अपना अस्तित्व बचाने का
बिगड़े मौसम को मनाने का

झगडे होते 
किसका दायित्व
किसका अपराध बड़ा मुझसे
वह खेला था, पहले मुझसे

चिंता है अपने जीवन की
नहीं सोच है संतुलन की

फिर से कागज भर जायेंगे
जंगल कटते जायेंगे

हम विकसित होते जायेंगे

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