एक बात पूछू सच बतलाना
सौंदर्य किसे कहते हो ?
दीवार के सिरहाने खड़े होकर उसने अचानक से पूछा
अब तक कागजों में खोया हुआ मेरा चेहरा
उसके अधरों के अनुकम्पनो को निहारने ल़ग़ा
सौंदर्य सामंजयस्य है आकांक्षाओ और अनुभूतियो का
मैंने इतना ही कहा
लेकिन आकांक्षाओ की तो सीमा ही नहीं
फिर कैसा सामंजयस्य, वह बोली
अनुभूतियाँ करती है सीमित विस्तार आकांक्षाओ का
सौन्दर्य तो मात्र कल्पना है संतुष्टी की
जिस विषय ने संतुष्ट कर दिया
बस वही परख है सौन्दर्यता की
यह सुनकर वो हस पड़ी
मानो सौन्दर्य ने उसे सराबोर कर दिया
कृते अंकेश
सौंदर्य किसे कहते हो ?
दीवार के सिरहाने खड़े होकर उसने अचानक से पूछा
अब तक कागजों में खोया हुआ मेरा चेहरा
उसके अधरों के अनुकम्पनो को निहारने ल़ग़ा
सौंदर्य सामंजयस्य है आकांक्षाओ और अनुभूतियो का
मैंने इतना ही कहा
लेकिन आकांक्षाओ की तो सीमा ही नहीं
फिर कैसा सामंजयस्य, वह बोली
अनुभूतियाँ करती है सीमित विस्तार आकांक्षाओ का
सौन्दर्य तो मात्र कल्पना है संतुष्टी की
जिस विषय ने संतुष्ट कर दिया
बस वही परख है सौन्दर्यता की
यह सुनकर वो हस पड़ी
मानो सौन्दर्य ने उसे सराबोर कर दिया
कृते अंकेश