पत्ते पतझड़ को रहे ताक
टूटे डाली से हो अवाक्
ठोकर में उड़ते इधर उधर
अब इनकी किसको रही फिकर
टूटे डाली से हो अवाक्
ठोकर में उड़ते इधर उधर
अब इनकी किसको रही फिकर
छूटी डाली और भ्रम टूटा
बस पल भर में ही घर छूटा
अब तो एक झोके का एहसान
ले चले कहा बना मेहमान
ऐसे सपने बस रहे टूट
हर पल जाते वो कही छूट
और में इन सबसे हो अनजान
रचता फिर से स्वप्न एक नादान
कृते अंकेश
बस पल भर में ही घर छूटा
अब तो एक झोके का एहसान
ले चले कहा बना मेहमान
ऐसे सपने बस रहे टूट
हर पल जाते वो कही छूट
और में इन सबसे हो अनजान
रचता फिर से स्वप्न एक नादान
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment