कहने को तो बेहाल सा गया
लेकिन कलेंडर से एक साल गया
उड़ते रहे इरादे
खिलते रहे थे सपने
कानून के नुमाइन्दे
क्यों बन गए दरिन्दे
इनके जिस्म से उड़कर
ईमान जाने कहा बिखर गया
इंसान हर एक रोया
सपना किधर गया
लेकिन कलेंडर से एक साल निकल गया
कृते अंकेश
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