कितनी धूल उड़ाओगे
तुम कितना आगे जाओगे
टूटे घर से जाती सडको पर क्या लोट कभी तुम आओगे
बिखरे बालो में घूम रहे
ले हाथो में सपनो को झूम रहे
इन नादाँ हाथो से कितनी और पतंग कटवाओगे
तुम कितना आगे जाओगे
बेचा मिटटी को सपनो को
लूटा किसको है अपनों को
इन पैसो की खातिर कब तक इंसानियत ठुकराओगे
तुम कितना आगे जाओगे
कृते अंकेश
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