ख्वाइश न मेरी सुलझ पाती
सपने न मेरे उलझ पाते
कितने सारे रस्ते जुड़ते
मिलते, आते और मिट जाते
उम्मीदों को में अपनी
फिर तोडा करता जोड़ा करता
कागज पर लकीरे खिची हुई
फिर फिर उनको मोड़ा करता
जाना मैंने तुमको जितना
तुम दूर हुए मुझसे उतना
ख्वाबो की हकीकत रही छिपी
सिमटा सा रहा बस कोई सपना
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment