सच की कोई आवाज़ नहीं होती
सच तो स्वत: बया होता है
कहने दो लाखो को झूठ ही सही
सच कहने के लिए एक इंसा ही बहुत होता है
आसान नहीं होता भीड़ में अपनी आवाज़ को सुनाना
लेकिन आसान नहीं है सच को भी दबाना
देर से ही सही लोगो को इसका एहसास तो होता है
कुम्भकर्ण भी ज्यादा से ज्यादा छ: मास तक ही सोता है
रास्ते आपके है चयन भी आपका होता है
लेकिन सच के साये में इंसान शायद ही कभी खोता है
कृते अंकेश
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