लहरों ने कब छोड़ा था नाद
बढता जाता सागर विशाल
टकराती हिम खंडो को रोक
ले जाती भू खंडो को सोख
उतरे जाते कितने थे पाल
बड़ते जाते नावो के जाल
सीमाओ का अंत छोड़
बड़ते जाते सागर को मोड़
ऐसे ही उमड़े मन के भाव
होते जाते कितने विशाल
ले जाये किसको जोड़ तोड़
किसको मिलता इनका है छोर
कृते अंकेश
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