उषा की लालिमा के पदचिन्ह शेष थे
खुले खुले से कैश थे
तलाशती रही धरा
वो भाव ही विशेष थे
अन्तरंग था छिपा
व्योम था खिला हुआ
योवन की श्रेष्टता में
सज रहे श्रृंगार थे
नेत्र भाव थे विमुख
मुक्त अधर दीप्ति युक्त
खुले खुले से कैश थे
तलाशती रही धरा
वो भाव ही विशेष थे
अन्तरंग था छिपा
व्योम था खिला हुआ
योवन की श्रेष्टता में
सज रहे श्रृंगार थे
नेत्र भाव थे विमुख
मुक्त अधर दीप्ति युक्त
भाव भंगिमा में रहे
सर्व कर ताल थे
ढूंढता था शेष को
योवन विशेष को
यदा कदा भटक रहे
सौन्दर्य पद जाल थे
कृते अंकेश
सर्व कर ताल थे
ढूंढता था शेष को
योवन विशेष को
यदा कदा भटक रहे
सौन्दर्य पद जाल थे
कृते अंकेश
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