विकास
एक अनसुलझी अनजान प्रक्रिया, शायद इसी से जीवन की शुरुआत हुई. समय के साथ साथ विकास के चक्र में घूमते हुए, जीवन परिष्कृत होता चला गया. मनुष्य पृथ्वी की सर्व विकसित प्रजाति बन गया. ज्ञान का संग्रह होने लगा. छिपी हुई संपत्तियों की खोज शुरु हुई. प्रकृति को झकझोरा जाने लगा. अर्थ की उत्पत्ति हुई और सामाजिक जीवन में आर्थिक तत्त्व का समावेश हो गया. आर्थिक संग्रह बढने लगा, विषमताए भी बढने लगी, और कब यह संग्रह की प्रक्रिया संघर्ष में बदल गयी, पता ही नहीं चला. विचारों के साथ साथ मतभेद भी जन्म लेने लगे. ये खेल प्रकृति का रचा हुआ था या मनुष्य के विकास की कमी, यह तो कहना मुश्किल है.
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