सतरंगी बारिशो मे में तन्हा सा जी गया
हुश्न की बूंदों को बेधड़क हो पी गया
बरसते थे जज्बात इरादे ख़यालात भी
मैं बेफिक्र इनसे हर इक रात सीं गया
अश्को के तराजू तबस्सुम को तोलते
हिज़ ए दस्तूर तरन्नुम टटोलते
महफ़िलो में तेरी बन कायनात जी गया
शोख ए हुश्न में हर एक रात पी गया
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment