मिटती रही आवाज़ फिर भी
क्यों रहे तुम मौन थे
लुटता रहा मेरा शहर
जो लूटते वो कौन थे
सपने उड़े पल में कही
टूटी हसी उधडी ख़ुशी
अब मौत से लडती जिंदगी
फिर भी रहे क्यों मौन थे
प्रश्न उठता है सदा
क्यों मात्र नारी अस्मिता का
दंश मिलता क्यों मुझे
जब मेरा ही उत्पीडन हुआ
क्यों नहीं खुशिया मुझे
मिल जाती है फिर लौट कर
शायद हसू खुलकर कभी
जो साथ आये लोग सब
मिटती रहेगी वरना सदा
आवाज जो यह मौन थी
शायद रखेगा याद कोई
टूटी कहानी कौन थी
कृते अंकेश
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