सजती सभा स्वाधीनता
सम्राट सा सम्मान है
सम्पूर्ण सृष्टि सार सरिता
सज रहा सुरधाम है
स्वतंत्र स्वयंभू स्वराज्य का
हो रहा उदघोष है
लहरा रहा तिरंगा
हर साँस में अब जोश है
इस तिरंगे में छिपे है
सेकड़ो तप त्याग के
छोड़ वैभव को गए जो
हसते इस संसार से
ढूंढता योवन जिन्हें था
दे रहे थे आहुति
शूलिया थी थक गयी
उनकी कहानी न रुकी
ओज के वो पुष्प थे
थे इस धरा के पुत्र वो
रच गए इतिहास स्वर्णिम
मृत्यु से अभिरुद्द हो
देखती थी स्वप्न जो
आँखे हमेशा वो रही
है हकीकत सामने
उपहार उनकी देन ही
नाद मस्तक ताल हृदय
बढ रहे अविराम है
प्रेरणा उनसे मिली
जीवन नहीं विश्राम है
स्वप्न है बस अब सजाना
बाकि क्या जिए और क्या मरे
और क्या वह जिंदगी
जो न हुई राष्ट्र के लिए
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