ankesh_writes
Sunday, October 28, 2012
तोड़ लकीरों को आ लिख ले
सपनो की फरियाद नहीं
रिश्ते जाति देश दीवारे
कुछ रह मुझको याद नहीं
एक आँगन में साँसे ले
और एक गगन में भरे उड़ान
एक उम्मीद ही रहे सर्वोपरि
खुशिया पाए हर इंसान
कृते अंकेश
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