तुम तक मेरे गीत न पहुचे
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या
मेरे शब्द रहे जो उलझे
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या
चाहा तुमने उड़ना सपनो में
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या
चाहा जुड़ना तुमने अपनों में
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या
में सोचूंगा फुर्सत में फिर
क्या चुनने में गलती की
में ढूंढूंगा शब्दो में फिर
क्या बुनने में गलती की
में देखूँगा सपनो में फिर
क्या रंगने में गलती की
में देखूँगा उन अपनों में फिर
क्या बनने की गलती की
कृते अंकेश
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