उड़ती रही विषाद विपदा
नीरवता आ संलग्न हुई
मौन रहा छाया बस यु
मानो मृत्यु जीवंत हुई
शुष्क अधर न खुल पाये
आँखों ने छोड़ दिया तकना
साँसे यु चलती अब भी थी
पर लगता था सब कुछ सपना
यह वैराग्य जीवन था करता
शोध प्रेम कि छाया में
महामूर्ख ही रहा यहाँ वह
जिसने ढूंढा इसको काया मैं
कृते अंकेश
नीरवता आ संलग्न हुई
मौन रहा छाया बस यु
मानो मृत्यु जीवंत हुई
शुष्क अधर न खुल पाये
आँखों ने छोड़ दिया तकना
साँसे यु चलती अब भी थी
पर लगता था सब कुछ सपना
यह वैराग्य जीवन था करता
शोध प्रेम कि छाया में
महामूर्ख ही रहा यहाँ वह
जिसने ढूंढा इसको काया मैं
कृते अंकेश
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