टुकड़ो में पलती है सपनो की आशा
कुछ को हताशा, कुछ को निराशा
हमने यह आंसू भी हस के संवारे
कुछ ने उतारे, कुछ ने निकाले
बहती जाती समय की यह धारा
एक पल तुम्हारा, एक पल हमारा
उड़ना जो चाहा पंखो से अपने
तुमने पुकारा, खुद को उतारा
डूबा न जाने क्यों फिर दिल तुझमे
जबकि न तेरा किनारा हमारा
कृते अंकेश
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