यह आत्मा बेचारी
न जाने कितनी बार हारी
बदलती रही शरीर
फिर भी रही कुवारी
इसकी नियति में
लिखना है भटकना
कहते है यह अंश है जिसका
उसकी है सारी दुनिया
फिर क्यों इसके हिस्से में
आयी लाचारी
यह आत्मा बेचारी
न जाने कितनी बार हारी
कृते अंकेश
न जाने कितनी बार हारी
बदलती रही शरीर
फिर भी रही कुवारी
इसकी नियति में
लिखना है भटकना
कहते है यह अंश है जिसका
उसकी है सारी दुनिया
फिर क्यों इसके हिस्से में
आयी लाचारी
यह आत्मा बेचारी
न जाने कितनी बार हारी
कृते अंकेश
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