ankesh_writes
Monday, November 11, 2013
इस मिटटी से उठा कभी
इसमें ही मिट जाउंगा
में पौधा इस आँगन का
इसमें ही लहराऊंगा
कृते अंकेश
इस मिटटी की शाखो से
हर बगिया ही महकी है
फूल यहाँ के जहा गिरे
वो बस्ती ही चहकी है
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