वह आते है यदा कदा
दिखाकर स्वप्न छोड़ जाते है हमें यहाँ
कहते है यह नरक में रहना तुम्हारी मज़बूरी है
और इसे स्वर्ग बनाने के लिए हमें वहा चुनकर भेजना जरूरी है
पीढ़िया दर पीढ़िया
गुजरती गयी यु ही
न तो नरक कि तस्वीर बदली और न ही स्वर्ग कि उम्मीद बंधी
अब हमें छोड़ना होगा देखना सपना
जब मिला ही नहीं स्वर्ग तो वो काहे का अपना
हम नरक के फूल है यही खिलेंगे
स्वर्ग की आकांक्षाओ पर अब नहीं मिटेंगे
करेगे श्रम और सजायेंगे सपना
होगा नेतृत्व अब सिर्फ अपना
कृते अंकेश
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