एक अँधेरा है सघन छाया हुआ
लग रहा जैसे कि कोई आया हुआ
जो उजाले से न अब तक है हारा
सो गया जबकि यह शेष जग सारा
ले तिमिर कि चादरों को वो उढ़ाता है
थक चुके जग को ढांढस बंधाता है
रोकता है फिर दिवस को शीघ्र आने से
विश्व की कर्म वेदी को फिर सजाने से
देखता है रात्रि का खेल वो सारा
फिर बिछुड़ने को चलेगा जग यह दोबारा
फिर मिलन की राह को वो रात लाएगा
पर भला क्या वो दिवस का साथ पायेगा
कृते अंकेश
लग रहा जैसे कि कोई आया हुआ
जो उजाले से न अब तक है हारा
सो गया जबकि यह शेष जग सारा
ले तिमिर कि चादरों को वो उढ़ाता है
थक चुके जग को ढांढस बंधाता है
रोकता है फिर दिवस को शीघ्र आने से
विश्व की कर्म वेदी को फिर सजाने से
देखता है रात्रि का खेल वो सारा
फिर बिछुड़ने को चलेगा जग यह दोबारा
फिर मिलन की राह को वो रात लाएगा
पर भला क्या वो दिवस का साथ पायेगा
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment